पिछले कुछ दिनों से खबरों के माध्यम से ये बात सामने आ रही थी कि टीम इंडिया शुभमन गिल की जगह पृथ्वी शॉ को शामिल करना चाहती है। जबकि वह इस वक्त श्रीलंका दौरे पर Team India का हिस्सा हैं। वहीं स्टैंडबाई खिलाड़ी बंगाल के अभिमन्यू ईश्वरन को लेकर अब चेतन शर्मा के नेतृत्व वाली चयन समिति व भारतीय टीम मैनेजमेंट के बीच बातचीत बंद हो गई है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये पहला मौका नहीं है जब किसी खिलाड़ी को लेकर चयनकर्ता व कप्तान के टीम मैनेजमेंट के बीच ऐसा हुआ हो। तो आइए आपको इस आर्टिकल में कुछ ऐसी ही पुरानी घटनाओं के बारे में बताते हैं, जिनका जिक्र न्यूज-18 ने भी किया है।
पहले भी आमने-सामने आ चुके हैं कप्तान-चयनकर्ता
ये जरुरी नहीं की भारतीय चयनकर्ता द्वारा चुने गए खिलाड़ी हमेशा कप्तान के पसंद के हो। इस वक्त Team India में बतौर स्टैंडबाई प्लेयर अभिमन्यू ईश्वरन के चलते कप्तान विराट कोहली व चयनकर्ता आमने-सामने आ गए हैं। मगर ये कहानी आज की नहीं बल्कि सालों से चली आ रही है।
ये बात है 70 के दशक की शुरुआत की, जब बंगाल के विकेटकीपर हुआ करते थे पारसी समुदाय के रूसी जीजीभाई को शामिल किया गया था। दरअसल, वेस्टइंडीज दौरे से पहले दलीप ट्रॉफी खेली गई थी।
जिसमें पूर्वी क्षेत्र की कप्तानी रमेश सक्सेना कर रहे थे और दलजीत सिंह को विकेटकीपिंग करनी थी। लेकिन इस मैच का हिस्सा रहे एक खिलाड़ी ने पीटीआई को बताया, ‘‘चयन समिति के तत्कालीन अध्यक्ष विजय मर्चेंट (पारसी समुदाय के दिग्गज) ने टॉस से ठीक पहले रमेश भाई को बुलाया तथा दलजीत को बल्लेबाज और रूसी को विकेटकीपर के रूप में खिलाने को कहा। रमेश भाई उनकी बात नहीं टाल सके।’’
इसके बाद नव नियुक्त कप्तान अजीत वाडेकर उनके चयन को लेकर मर्चेंट जैसे दिग्गज के साथ बहस नहीं करना चाहते थे। बंगाल के पूर्व कप्तान संबरन बनर्जी ने बताया कि 1979 में सुरिंदर खन्ना के साथ उनका इंग्लैंड दौरे पर जाना तय था लेकिन आखिर में तमिलनाडु के भरत रेड्डी को चुन लिया गया। तत्कालीन कप्तान एस वेंकटराघवन भी तमिलनाडु के थे।
कपिल देव ने भी अचानक मदन लाल को किया था शामिल
इसके बाद जब कपिल देव भारतीय टीम के कप्तान थे, तब भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। जब कप्तान ने मनोज प्रभाकर की जगह मदन लाल को टीम में शामिल करवा लिया था, जो उस दौरान इंग्लैंड में क्लब क्रिकेट खेल रहे थे।
1996 में जब भारतीय टीम, इंग्लैंड दौरे पर गई थी, तब कप्तान अजहरुद्दीन व कोच संदीप पाटिल, सौरव गांगुली को इंग्लैंड नहीं ले जाना चाहते थे। मगर उस वक्त के चयनकर्ता संबरन बनर्जी ने चयनसमिति के तत्काली अध्यक्ष गुंडप्पा विश्वनाथ और किशन रुंगटा को गांगुली को दौरे पर ले जाने के लिए मना लिया था।
सहारा कप 1997 में भी एक ऐसा ही वाक्या देखने को मिला था, जब कप्तान सचिन तेंदुलकर और टीम मैनेजमेंट जय प्रकाश यादव को टीम में चाहते थे लेकिन चयन समिति के संयोजक ज्योति वाजपेई ने अपने राज्य उत्तर प्रदेश के ज्योति प्रकाश यादव को भेज दिया। लेकिन सचिन ने ज्योति को एक भी मैच में अंतिम ग्यारह में जगह नहीं दी थी।
धोनी ने भी की थी मनमानी
1997 में वेस्टइंडीज दौरे में कप्तान सचिन तेंदुलकर को टीम में अपनी पसंद का ऑफ स्पिनर नहीं मिला था, क्योंकि हैदराबाद के चयनकर्ता ने नोएल डेविड को टीम में शामिल करा दिया था। जो ज्यादा वक्त तक Team India का हिस्सा नहीं रहे।
मगर कुछ कप्तान ऐसे भी रहे, जो जोर-जबरदस्ती के साथ अपनी पसंद के खिलाड़ियों को मैदान पर उतारने में सफल रहे। इनमें से एक थे सौरव गांगुली। दिग्गज कप्तान ने 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली गई यादगार सीरीज में चयनकर्ता शरणदीप सिंह को टीम में शामिल करना चाहते थे, लेकिन कप्तान गांगुली हरभजन सिंह के लिए अड़ गए और आखिर में फिर जो हुआ वह आज भी भारतीय क्रिकेट में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
इसके बाद 2011 में महेंद्र सिंह धोनी ने अपने दोस्त आरपी सिंह को टेस्ट टीम में शामिल करवा दिया था। हालांकि आरपी ने निराशाजनक प्रदर्शन किया और वह दोबारा टेस्ट क्रिकेट खेलने नजर नहीं आए।