Under-19 World Cup 2022: अगले साल के जनवरी महीने में होने वाली अंडर-19 वर्ल्ड कप (Under-19 World cup) के लिए भारतीय टीम ने अपने खिलाड़ियों के नामों की घोषणा कर दी हैं. गाजियाबाद का रहने वाला सिद्धार्थ यादव (Sidharth Yadav) भी भारत की इस टीम में जगह बनाने में सफल रहा हैं. सिद्धार्थ (Sidharth Yadav) के पिता एक राशन की दूकान चलाते हैं.
बेटे के इस ख़ास उपलब्धि के बाद पूरे घर में ख़ुशी का माहौल हैं. उनके दूकान पर आने वाले सभी लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं. इस युवा इंडियन टीम को वर्ल्ड कप से पहले एशिया कप (Under-19 Asia Cup) में हिस्सा लेना हैं. जिसकी तैयारी के लिए अभी पुरी टीम बैंगलोर स्थित राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में पसीने बहा रही है.
सिद्धार्थ के पिता भी खेलना चाहते थे भारत के लिए क्रिकेट
भारत की अंडर-19 टीम में चुने गए गाजियाबाद के सिद्धार्थ यादव (Sidharth Yadav) के पिता श्रवण यादव (Shravan yadav) की गाजियाबाद में किराने की दुकान चलाते हैं. हालाँकि एक समय पर वो भी भारतीय टीम के लिए क्रिकेट खेलना चाहते थे. लेकिन उनका क्रिकेटिंग करियर गाजियाबाद में भारत के पूर्व क्रिकेटर मनोज प्रभाकर (Manoj Prabhakar) को नेट्स में गेंदबाजी करने तक ही सीमित रहा. लेकिन अब उनके इस सपने को उनके बेटे ने पूरा कर दिया है. सिद्धार्थ (Sidharth Yadav) को क्रिकेट अपने पापा के द्वारा विरासत में मिली थी.
अपने बेटे का भारतीय टीम में चयन होने के बाद श्रवण यादव (Shravan Yadav) ने बताया कि, "जब सिद्धार्थ छोटा था तो यह उनका ही सपना था कि उनका बेटा एक दिन क्रिकेट खेले. जब उनके बेटे ने पहली बार बल्ला थामा और वह बाएं हाथ पर खड़ा था. यह देखकर मेरी मां ने कहा कि ये कैसा उल्टा खड़ा हो गया है. मैंने कहा कि उसका यही स्टांस होगा और तब से वह बाएं हाथ का बल्लेबाज हैं"
बेटे को यहाँ तक पहुंचाने में की है कड़ी मेहनत
सिद्धार्थ यादव (Sidharth Yadav) की इस ख़ास उपलब्धि के पीछे उनके पिता श्रवण यादव की भी कड़ी मेहनत छुपी हुई हैं. सिद्धार्थ का सीरियस तौर पर क्रिकेट 8 साल की उम्र में शुरू हुआ था. सिद्धार्थ ने अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की. हर दिन दोपहर में श्रवण अपने बेटे को पास के मैदान में लेकर जाते और थ्रो डाउन करते कि सिद्धार्थ को सीधे बल्ले से खेलना पड़े.
इंडियन एक्सप्रेस के साथ हुई बातचीत के दौरान श्रवण ने बताया, मैंने यह सुनिश्चित किया कि वह करीब 3 घंटे तक ऐसा अभ्यास करें. मैं दोपहर 2 बजे अपनी दुकान बंद कर देता था और फिर हम 6 बजे तक मैदान में रहते. इसके बाद शाम को दुकान पर लौटता. रात में साढ़े 10 बजे खाना खाते और फिर सोते. और अब उनके बेटे ने उनके इस मेहनत को पुरी तरह से सफल कर दिया है.
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