पांच ऐसी घटनाएँ जब कोच और कप्तान के बीच देखने को मिला मतभेद

Published - 03 Jul 2017, 01:45 PM

अनिल कुंबले और विराट कोहली के बीच का मतभेद ऐसी पहली घटना नहीं है, जब क्रिकेट के मैदान पर कोच और कप्तान आमने सामने आये हो, ऐसा क्रिकेट जगत में कई बार देखने को मिला है, जब टीम के कोच और कप्तान आमने सामने आये. हाल में ही अनिल कुंबले ने इस्तीफ़ा देकर सभी को चौकाया था और उससे भी ज्यादा हैरानी उस समय हुई, जब इस्तीफ़ा देने के बाद कुंबले ने अपने इस्तीफे का कारण कप्तान के साथ मतभेद को बताया.

हालाँकि कुंबले की अगुवाई में टीम इंडिया ने बड़ी सफलता हासिल की, लेकिन शायद नतीजों से ज्यादा आज कल के क्रिकेट में खिलाड़ियों या फिर दो व्यक्तीयों के अहंकार को ज्यादा तवज्जो दी जाने लगी है.

आइये अब ऐसी ही पांच घटनाओं पर नज़र डालते है, जब कोच और कप्तान आये आमने-सामने

*सौरव गांगुली और ग्रेग चैपल

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ग्रेग चैपल और सौरव गांगुली का नाम सुनते ही सभी भारतीय क्रिकेट फैन्स के मन में सबसे पहले 2007 का विश्वकप आता है. ग्रेग चैपल ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ियों में शुमार है, लेकिन जब भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने उन्हें टीम का मुख्य कोच चुना, तभी से टीम में उनका और सीनियर खिलाड़ियों का तालमेल सही नहीं बैठा.

2005 में उन्हें जॉन राईट के बाद टीम के मुख्य कोच के रूप में चुना गया, टॉम मूडी और डेव व्हाटमोर जैसे दिग्गजों के बीच सौरव गांगुली, जोकि उस समय टीम के कप्तान थे, उन्होंने ही चैपल के नाम की सिफारिश की थी.

लेकिन चैपल ने कोच बनते ही गांगुली को कप्तानी छोड़कर अपनी बल्लेबाज़ी पर ध्यान देने के लिए कहा और गांगुली ने भी दो सालों से कोई टेस्ट शतक नहीं लगाया था, इसलिए चैपल की बात मान ली, लेकिन उसके बाद गांगुली की टीम में जगह पर सवाल खड़े होने लगे. हालत उस समय खराब हुए जब एक ईमेल लीक हुआ, जिसमे चैपल ने बीसीसीआई से कहा, कि गांगुली कप्तानी वापस लेने की कोशिश कर रहे है.

2007 विश्वकप में शर्मनाक हार के बाद चैपल के कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त कर दिया गया.

* सचिन तेंदुलकर और कपिल देव

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भारतीय क्रिकेट इतिहास के दो सबसे बड़े खिलाड़ी, शायद ही व्यक्तिगत तौर पर इन खिलाड़ियों जितना और किसी ने कुछ हासिल किया हो. कपिल देव वही कप्तान है, जिन्होंने टीम इंडिया को पहला विश्वकप दिलाया था और सचिन तेंदुलकर के नाम क्रिकेट में लगभग सभी रिकॉर्ड दर्ज है.

कपिल देव को 1999 में सचिन की कप्तानी के दूसरे दौर में बतौर कोच चुना गया था, लेकिन ये दो भारतीय क्रिकेट के दिग्गज मैदान पर कभी भी एक दूसरे के साथ सही तालमेल नहीं बिठा सके.

कपिल देव की अगुवाई में टीम इंडिया को ऑस्ट्रेलिया में 0-3 से सीरीज गवानी पड़ी और उसके बाद साल 2000 में जब मैच फिक्सिंग के बादल टीम पर छाए, उस समय कपिल देव का कोचिंग का सफर समाप्त हो गया.

सचिन ने अपनी ऑटो बायोग्राफी में भी इस मुद्दे को उठाया और लिखा, कि "कपिल देव भारत की ओर से क्रिकेट खेलने वाले सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक है. मैंने हमेशा से यही माना है, कि कोच की भूमिका टीम की सफलता के लिए सबसे अहम होती है और मुझे ऐसा लगा था, कि ऑस्ट्रेलिया के मुश्किल दौरे पर कपिल देव से बेहतर कौन होगा, लेकिन मुझे उनके सुझाव में कुछ खास नज़र नहीं आया और सभी कड़े निर्णय लेने का भार कप्तान पर ही था."

जब कपिल देव से इस मामले पर जवाब माँगा गया, तो उन्होंने कहा, कि "मुझे इस पुरे मामले पर कुछ नहीं कहना है, यह उनकी व्यक्तिगत राय है और मैं इसका सम्मान करता हूँ."

*केविन पीटरसन और पिटर मूर्स

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केविन पीटरसन इंग्लैंड की टीम के सबसे बेहतरीन क्रिकेटर में से एक है, पीटरसन के तूफानी रुख के कारण ही टीम को एकमात्र आईसीसी टूर्नामेंट में जीत हासिल हुई थी, जब पॉल कॉल्लिंगवुड की अगुवाई में साल 2010 में टीम ने टी-20 विश्वकप अपने नाम किया था. इसी विश्वकप में केविन पीटरसन मैन ऑफ द टूर्नामेंट रहे थे.

पीटरसन को टीम की कप्तानी भी सौंपी गयी, लेकिन उस समय उनके रिश्ते टीम के मुख्य कोच पीटर मूर्स के साथ कुछ खास नहीं थे. पीटर को टीम का कोच एशेज में 0-5 से मिली करारी हार और विश्वकप 2007 में सुपर 8 स्टेज से बाहर होने के बाद बनाया गया था, उन्होंने डंकन फ्लेचर की जगह ली थी.

पीटरसन का पहला ही दौरा भारत का था, जहाँ मेहमान टीम को सात मैचो की वनडे सीरीज में 0-5 से हार का सामना करना पड़ा और टेस्ट सीरीज में भी 0-1 से हार झेलनी पड़ी. जिसके बाद उन्होंने पिटर मूर्स की जगह पर शेन वार्न को नियुक्त करने की सिफारिश की थी. लेकिन इसके बाद पीटरसन ने मीडिया के सामने अपनी बात रखते हुए कहा, कि टीम के हित के लिए मैं अपने पद से इस्तीफ़ा देता हूँ और पिटर मूर्स को इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने उनके पद से हटा दिया था.

*गौतम गंभीर और केपी भास्कर

गौतम गंभीर टीम इंडिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक है, टीम इंडिया को एक नहीं बल्कि दो दो विश्वकप दिलाने में अहम योगदान निभाया है. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से दूर गंभीर एक अलग ही विवाद में फंस गए, दरअसल उनपर अपने स्टेट के कोच केपी भास्कर के साथ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगा था.

दिल्ली की टीम के लिए 2016-2017 का सत्र बेहद खराब रहा था, केपी भास्कर की अगुवाई में टीम किसी भी फॉर्मेट अच्छा नहीं कर सकी थी और टीम के युवा बल्लेबाज़ उन्मुक्त चंद को टीम से बाहर कर दिया गया, जबकि नितीश राणा को घर वापस भेज दिया गया था.

जिसके बाद गंभीर और भास्कर के बीच अनबन की ख़बरें सामने आई थी, जिनपर बयान देते हुए गंभीर ने कहा था, कि "अगर टीम में युवा खिलाड़ियों के लिए खड़ा होना गुनाह है, तो मैं किसी भी सज़ा के लिए तैयार हूँ. लेकिन मैं इस आदमी (केपी भास्कर)को नितीश राणा और उन्मुक्त चंद जैसे युवा खिलाड़ियों के करियर के साथ नहीं खेलने दे सकता."

*शाहिद अफरीदी और वक़ार युनिस

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पाकिस्तान क्रिकेट के दो दिग्गज खिलाड़ी जब बतौर कोच और कप्तान साथ काम करने के लिए सामने आये, तब नतीजा ऐसा नहीं रहा, जैसा पाकिस्तान की टीम मैनेजमेंट ने सोचा था.

अफरीदी और वक़ार के बीच पहली बार मतभेद की खबरे 2011 में आई जब पाकिस्तान की टीम वेस्टइंडीज के दौरे पर थी. यह विवाद इतना बिगड़ गया था, कि अफरीदी को अपनी कप्तानी से हाथ धोना पड़ा और साथ ही उन्होंने सन्यास की भी घोषणा की.

इसके बाद साल 2016 में जब वक़ार फिर से टीम के कोच बने, तो उस समय भी उन्होंने अफरीदी पर निशाना साधा और उनके कमिटमेंट पर सवाल उठाया. यह बात एशिया कप और टी-20 वर्ल्ड कप की है, जब वक़ार ने आरोप लगाते हुए कहा था, कि टीम की प्रैक्टिस और मीटिंग्स में अफरीदी शामिल नहीं होते.

इसके बाद पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने उनकी जगह मिकी आर्थर को नया कोच नियुक्त किया था और एक बार फिर अफरीदी ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास का ऐलान किया था.