DRS: दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई एक बार फिर से सुर्खियों में है. बेंगलुरू के चिन्नास्वामी स्टेडियम में जारी रणजी ट्रॉफी का फाइनल खेला जा रहा है. इस अहम मुकाबले में बोर्ड ने डीआरएस (DRS) का इस्तेमाल न करने का निर्णय किया है. इस फैसले का प्रभाव मुकाबले पर भी पड़ सकता है. फाइनल में मुंबई और मध्य प्रदेश आमने-सामने हैं.
इस खिताबी मुकाबले की लाइव टेलीकास्टिंग और स्ट्रीमिंग हो रही है. लेकिन, हैरान करने वाली बात तो यह है कि इस मैच में डिसिजन रिव्यू सिस्टम यानी डीआरएस (DRS) उपलब्ध नहीं है. जिसकी वजह से सरफराज खान को एक 'जीवनदान' मिला और उन्होंने शतक ठोक पूरे मैच का पासा ही पलट दिया.
DRS को लेकर घेरे में बीसीसीआई
मुंबई के बल्लेबाज सरफराज खान इन दिनों जबरदस्त फॉर्म में हैं और उन्होंने पहली पारी में अपनी टीम के लिए 134 रन की ताबड़तोड़ पारी खेली. खेल के पहले दिन सरफराजएक बेहद करीबी एलबीडब्ल्यू में विकेट खोने से बच गए और इस फैसले ने मैच का पूरा सीन पलटकर रख दिया. मध्य प्रदेश के तेज गेंदबाज गौरव यादव ने उन्हें अपने जाल में फंसा लिया था लेकिन अंपायर ने बल्लेबाज को नॉट आउट करार दिया. जबकि रीप्ले में साफ स्पष्ट हो रहा है कि वो आउट थे.
इस अहम मुकाबले में डीआरएस (DRS) उपलब्ध न होने की को लेकर एक बीर फिर बीसीसीआई निशाने पर आ गई है. इसके पीछे की वजह बताई गई है कि ये बहुत महंगी टेक्नोलॉजी है. इसलिए इसका यूज नहीं हो रहा है. जबकि आईपीएल जैसे टूर्नामेंट में इसका इस्तेमाल एक टीम बार करती हैं. ऐसे में रणजी जैसे टूर्नामेंट इसका सुविधा न होना बोर्ड पर कई तरह के सवाल उठा रहा है.
DRS इस्तेमाल न करने के पीछे की बोर्ड ने बताई वजह
फिलहाल इससे पहले बीसीसीआई ने रणजी ट्रॉफी में डीआरएस उपलब्ध कराया है. रणजी ट्रॉफी 2019-20 के सेमीफाइनल और फाइनल के दौरान 'सीमित डीआरएस' का इस्तेमाल किया गया था. उस समय डीआरएस लागू होने वाले इस संस्करण में हॉक-आई और अल्ट्राएज टेक्नोलॉजी शामिल नहीं थी. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में रिव्यू के लिए इन्हें प्रमुख माना जाता है, लेकिन रणजी ट्रॉफी के दौरान इस टेक्नोलॉजी का यूज नहीं किया गया था.
बीसीसीआई के एक अधिकारी ने टीओआई से डीआरएस मामले पर बात करते हुए कहा, 'हमें अपने अंपायरों पर पूरा यकीन है. जबकि भारत के एक पूर्व क्रिकेटर ने कहा,
"डीआरएस (DRS) का इस्तेमाल करना एक महंगा अभ्यास है. लागत बढ़ जाती है. फाइनल में डीआरएस न होने से क्या फर्क पड़ता है. यह समय है कि हम अंपायरों पर भरोसा करें. भारत के दो सर्वश्रेष्ठ अंपायर (केएन अनंत पद्मद्मनाभन और वीरेंद्र शर्मा) इस मैच में अंपायरिंग कर रहे हैं और आखिरी नतीजा क्या है? यदि आप इसे फाइनल में इस्तेमाल करते हैं, तो आप इसे रणजी ट्रॉफी के लीग चरण में भी पेश करना चाहेंगे."
मशीन की वायरिंग महंगी होने का दिया गया हवाला
इसके अलावा टाइम्स ऑफ इंडिया से एक अधिकारी ने DRS पर बात करते हुए ये भी कहा,
"हर मशीन की वायरिंग काफी महंगी होती है. हॉकआई जैसी तकनीक के लिए अलग कैमरों की जरूरत पड़ती है. रणजी ट्रॉफी के मैच सीमित संसाधनों के साथ खेले जाते हैं. उन्होंने बताया कि एक मैच में 2 कैमरा सेटअप के लिए 6 हजार डॉलर और चार सेट कैमरे के लिए 10 हजार डॉलर और हॉटस्पॉट का खर्चा मिलाकर 16000 डॉलर यानी लगभग साढ़े 12 लाख रुपये खर्च करने होते हैं जो एक बड़ी राशि है."
मीडिया राइट्स से मोटी कमाई करने के बाद भी अधिकारी दे रहे हैं बचकाना बयान
बीसीसीआई के अधिकारियों की ओर से डीआरएस (DRS) का एक रणजी में इस्तेमाल न करने के पीछे की जो वजहें बताई जा रही हैं वो वाकई हैरान करने वाली हैं. क्योंकि हाल ही में बोर्ड ने आईपीएल के मीडिया राइट्स से करीब 50 हजार (48,390) करोड़ रुपये की मोटी कमाई की है. ऐसे में इस तरह का बयान वाकई बचकाना लगता है और ये कहना गलत नहीं होगा कि रणजी ट्रॉफी के क्वार्टर फाइनल, सेमीफाइनल और फाइनल मैच में डीआरएस का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. ताकि गलत फैसले से बचा जा सके.