बकरी चराने वाला आम शख्स बना क्रिकेटर, संघर्ष की कहानी सुनकर आंख से आ जाएंगे आंसू

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CA New Jr. Staff
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क्रिकेट (Cricket) एक ऐसी जगत है, जिसके जरिए अचानक से ही कुछ खिलाड़ी रातों-रात लोगों के चहेते सितारे बन जाते हैं. अक्सर जब हम किसी क्रिकेटर (Cricketer) के लाइफस्टाइल को देखते हैं, तो हमें उनकी जिंदगी बेहद आसान सी लगती है. लेकिन सच्चाई तो ये है कि, आम लोगों के बीच से ही ये सितारे कई संघर्षों को झेलते हुए नई कामयाबी हासिल करते हैं. इसी सिलसिले में आज हम बात करेंगे एक ऐसे खिलाड़ी की, जो कई उतार-चढ़ाव के बाद खुद को मशहूर क्रिकेटर के ओहदे पर पहुंचाया है.

संघर्षों से भरी है दोर्जे की क्रिकेट करियर की कहानी

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दरअसल लद्दाख के स्थानीय निवासी स्कालजांग दोर्जे (Skalzang Kalyan Dorje) यूं तो क्रिकेट जगत के कोई नामचीन खिलाड़ी नहीं हैं. लेकिन गली क्रिकेट से जम्मू-कश्मीर की टीम में अपनी जगह बनाने वाले इस खिलाड़ी की कहानी काफी बड़ी है. दोर्जे जम्मू-कश्मीर की क्रिकेट टीम में जगह बनाने वाले पहले ऐसे क्रिकेट हैं, जो केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से हैं. इस मुकाम को हासिल करने के पीछे उनकी जिंदगी की कहानी काफी लंबी है. इसलिए हमारी इस पूरी रिपोर्ट को जरूर पढ़ें.

जम्मू-कश्मीर टीम (Jammu And Kashmir) में खुद की जगह बना चुके पहले दोर्जे बौद्ध भिक्षु, फिजिकल एजुकेशन टीचर, पर्वतारोहियों को शिक्षा देने के साथ ही खेल से जुड़े सामान बेचने वाले एक आउटलेट में मैनेजर के तौर पर भी काम कर चुके हैं. लेकिन इसके बाद भी क्रिकेट में उनकी दिलचस्पी कभी कम नहीं हुई और इसी मेहनत की बदौलत आज वो एक नई ऊंचाई हासिल कर चुके हैं.

सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी 2021 में लद्दाख से खेलने वाले पहले क्रिकेटर हैं दोर्जे

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अपनी जिंदगी के बारे में एक निजी चैनल से बात करते हुए स्कालजांग दोर्जे (Skalzang Kalyan Dorje) ने अपने संघर्ष की कहानियों के बारे में भी खुलासा किया. उन्होंने बताया कि, उनकी जिंदगी एक ऐसे दौर से भी गुजरी है, जब मैं बकरियां चराता था, लेकिन अब घरेलू क्रिकेट में खेलने वाले लद्दाख के पहले खिलाड़ी के तौर पर मैनें बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है.  इस साल की शुरुआत में ही मैनें सैयद मुश्ताक अली टी20 टूर्नामेंट में जम्मू-कश्मीर की तरफ से खेला था.

हालांकि कोरोना महामारी की वजह 2020-21 रणजी सीजन को रद्द नहीं किया जाता तो वो फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलने वाले भी अपने प्रदेश से पहले खिलाड़ी होते. लेकिन उम्मीद खत्म नहीं हुई है. क्योंकि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख 2 अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन चुके हैं. हालांकि अभी क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ लद्दाख को बीसीसीआई ने मान्यता नहीं दी है. लेकिन ऐसा होते ही वो एक और उपलब्धि अपने नाम कर लेंगे.

जम्मू-कश्मीर के कप्तान परवेज रसूल भी कर चुके हैं दोर्जे की तारीफ

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दिलचस्प बात तो यह है कि, जम्मू-कश्मीर क्रिकेट टीम के कप्तान परवेज रसूल भी क्रिकेटर (Cricketer) दोर्जे के खेल से काफी ज्यादा प्रभावित हैं. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने खुलासा किया कि, बीते सीजन में नए टैलेंट को खोजने लद्दाख पहुंचा था, जहां पर 4-5 अच्छे खिलाड़ी मिले थे, इनमें एक नाम दोर्जे का भी था. इस दौरान हमने कुछ प्रैक्टिस मुकाबले भी खेले थे.

इस दौरान दोर्जे ने जम्मू-कश्मीर टीम के कुछ खिलाड़ियों को आउट भी किया था. दोर्जे में खास बात तो यह है कि, बाएं हाथ के शानदार स्पिनर खिलाड़ी अच्छी बल्लेबाजी करने की भी क्षमता रखते हैं. लेकिन बड़े टूर्नामेंट में अपने खेल प्रदर्शन के लिए उन्हें थोड़ा संघर्ष करना पड़ेगा.

बकरियों को चराते-चराते जम्मू-कश्मीर टीम का बने थे हिस्सा

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स्कालजांग दोर्जे ने अपनी जिंदगी के कुछ और यादों के बारे में जिक्र करते हुए बताया कि, बचपन मैं पहाड़ों पर बकरियों के पीछे अक्सर दौड़ता था, और इसी के चलते मैं शारीरिक रूप से बहुत ज्यादा फिट और चुस्त-दुरुस्त था. जिसका लाभ मुझे क्रिकेट खेलने के दौरान मिला. 1999 में दोर्जे सिर्फ 10 साल के थे, जब उन्होंने क्रिकेट में दिलचस्पी दिखानी शुरू की थी. इस दौरान उनके बैंगलुरू में रहने वाले अंकल उन्हें अपने साथ ले आए थे.

1999 में जब दोर्जे ने क्रिकेट खेलना शुरू किया, तब इंग्लैंड में क्रिकेट विश्व कप खेला जा रहा था. इसके बाद उन्होंने भी बच्चों के साथ क्रिकेट खेलना शुरू किया और धीरे-धीरे इस खेल के प्रति उनका जुनून बढ़ता गया. एक समय आया जब वो मैसूरू चले गए. यहां पर उन्होंने फिजिकल एजुकेशन में बैचलर डिग्री ली, और एक स्कूल में खेल शिक्षक के तौर पर नौकरी करने लगे. साल 2011 की बात है, जब उन्होंने क्रिकेट का दामन छोड़ खेल शिक्षक के साथ ट्रैकिंग कैंप मैनेजर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था.

लद्दाख के लोकल टूर्नामेंट में भी दोर्जे कर चुके हैं शानदार प्रदर्शन

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4 साल के बाद फिर लद्दाख में जब एक क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण हुआ तो, दोर्जे बचपन वापस आ गया और फिर से उन्होंने क्रिकेट में दिलचस्पी लेनी शुरू की. इस दौरान उन्होंने लद्दाख के कई लोकल टूर्नामेंट में भी हिस्सा लिया, और मैच में कई बार उन्हें मैन ऑफ द सीरीज के खिताब से भी नवाजा गया. यही नहीं अच्छा केएल प्रदर्शन के बाद उन्हें गिफ्ट के तौर पर फ्रीज, कूलर, वॉशिंग मशीन भी दी जाने लगी थी, और उनके इस प्रदर्शन से परिवार भी काफी खुश था.

लेकिन स्कालजांग दोर्जे (Skalzang Kalyan Dorje) की तमन्ना थी कि, वो घरेलू क्रिकेट खेलें. उनका ये सपना तब सच्चाई में बदला जब उन्हें सैयद मुश्ताक अली टी20 टूर्नामेंट में खेलने वाली जम्मू-कश्मीर टीम में शामिल किया गया. इस बारे में बात करते हुए दोर्जे ने बताया कि, वो आज तक उस दृश्य को नहीं भुला पाए हैं, जब कप्तान परवेज रसूल (Parvez Rasool) ने उन्हें डेब्यू कैप थमाते हुए ये कहा था कि, आप जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले लद्दाखी क्रिकेटर हैं. जो वाकई मेरे लिए कोई छोटी बात नहीं थी.

उम्र बन सकती है Cricketer के खेल करियर का रोड़ा

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फिलहाल क्रिकेटर (Cricketer) दोर्जे का मानना है कि, वो इस प्रयास में हैं कि, वो कप्तान रसूल की उम्मीदों पर खुद को साबित कर दिखाएं और आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर क्रिकेट टीम में अपनी जगह पहले से भी ज्यादा पक्की कर सकें. फिलहाल उनके इस सपने में उनकी लगातार बढ़ती उम्र रोक लगा सकती है.

परवेज रसूल