Ranji Trophy Final: चंद्रकांत पंडित (Chandrakant Pandit) ने मध्यप्रदेश को खिताब जिताकर अपने पुराने जख्म पर मरहम लगाया है। मध्यप्रदेश क्रिकेट टीम ने आज यानी 26 जून को रणजी ट्रॉफी 2022 के फाइनल में मुंबई को मात देकर अपना पहला खिताब जीता है। दोनों ही पारियों में मध्यप्रदेश मुंबई से आगे नजर आई, पहले इनिंग में मुंबई ने जहां 374 रन बनाए तो इसके जवाब में एमपी ने जोरदार पलटवार कर 536 रन जड़ डाले। 162 रनों से पहली पारी में पछाड़ने के बाद दूसरी पारी में बिल्कुल भी वापसी करने का मौका नहीं दिया।
दूसरी पारी में मुंबई 269 रनों पर सिमट गई और एमपी ने 108 रनों के लक्ष्य को सिर्फ 4 विकेट गंवा कर हासिल कर लिया। मध्यप्रदेश की जीत के पीछे सबसे मजबूत हाथ उनके कोच चंद्रकांत पंडित (Chandrakant Pandit) का है जिन्होंने एमपी को रणजी ट्रॉफी जिताने का अपना 23 साल पुराना सपना साकार किया है।
बतौर कोच Chandrakant Pandit का रणजी ट्रॉफी में दबदबा
चंद्रकांत पंडित कोचिंग के मामले में रणजी ट्रॉफी के सबसे जाने-माने कोच है, वे अबतक 6 बार बतौर कोच ये खिताब अपने नाम कर चुके हैं। साल 2002 और 2004 में मुंबई ने इनकी कोचिंग में 2 बार ट्रॉफी जीती थी। इसके बाद 2016 में एक बार फिर मुंबई को चंद्रकांत पंडित ने चैंपियन बनाया। वहीं 2017 से 2018 में जब विदर्भ ने लगातार रणजी ट्रॉफी में फतेह की तो चंद्रकांत पंडित ही उनके कोच है।
जब चंद्रकांत पंडित ने जब्त किए खिलाड़ियों के फोन
चंद्रकांत पंडित को खिलाड़ियों के साथ सख्त रवैया अपनाने वाला कोच माना जाता है। अनुशासन के पक्के माने जाने वाले इस कोच का स्टाइल सबसे अलग है, खबर थी कि चंद्रकांत ने खिलाड़ी को नियम तोड़ने के कारण थप्पड़ तक जड़ दिया था। ऐसे कई किस्से मशहूर हुए है, जब वे विदर्भ की कोचिंग कर रहे थे तो रणजी ट्रॉफी सेमीफाइनल में कर्नाटक के खिलाफ मैदान में उतरने से पहले चंद्रकांत ने सभी खिलाड़ियों के फोन जब्त करा लिए थे। उनका मानना था कि फोन से खिलाड़ियों का ध्यान बंट जाएगा।
पूरा हुआ Chandrakant Pandit का 23 साल पुराना सपना
मध्यप्रदेश को रणजी ट्रॉफी का खिताब जिताने का चंद्रकांत पंडित का सपना 23 साल बाद पूरा हुआ है। 1998 में जब मध्यप्रदेश ने फाइनल मुकाबला खेला था तो चंद्रकांत पंडित एमपी के कप्तान थे। लेकिन वे फाइनल मुकाबले में जीत हासिल नहीं कर पाए। बतौर खिलाड़ी चंद्रकांत पंडित इंटरनेशनल क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब नहीं हुए थे।
हालांकि फर्स्ट क्लास में उन्होंने 138 मैचों में 22 शतक एक साथ 8 हजार रन बनाए हैं। लेकिन नैशनल टीम के लिए वे सिर्फ 5 टेस्ट और 36 वनडे मैच ही खेल पाए।