हर गेंद, हर मैच को फैंस ने ऐसे इंज्वॉय किया, जैसे मानो अभी लाइव मैच चल रहा है और अगली गेंद पर क्या होने वाला है, किसी को इसकी खबर तक नहीं है। मूवी हॉल में हर गेंद पर ताली और कपिल देव की इंग्लिश पर सीटियां नहीं रुकीं। कबीर खान द्वारा बनाई गई इस फिल्म के हर कलाकार ने कमाल की एक्टिंग की। हर कोई स्टोरी जानता था, लेकिन जिस तरह से फिल्म ने फैंस को अपने साथ बांधा, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम ही होगी।
कप्तान कपिल देव की भूमिका निभा रहे रणवीर सिंह के क्या कहने.... उनकी पंजाबी और इंग्लिश ने फैंस को जहां खूब हंसाया, तो वहीं जीत के जज्बे को पर्दे पर कुछ ऐसे उतारा, मानो भारत ने शुक्रवार को ही विश्व कप जीता है।
आप में से तमाम लोग होंगे, जिन्होंने 1983 विश्व कप को देखा नहीं होगा, तो ये उनके लिए सुनहरा मौका है कि आप उस ऐतिहासिक लम्हें को जी सकते हैं। मजे की बात ये है कि इस फिल्म का कोई आपको स्पॉइलर नहीं दे सकता, क्योंकि कहानी पूरी सुन तो आपने रखी है... बस उसे देखने के लिए आपको हॉल में जाना होगा।
मेरा फेवरेट मूमेंट
वैसे तो इस फिल्म के आखिर में जब रणवीर सिंह अपनी टीम के साथ ट्रॉफी उठाते हैं, उस मूमेंट की तो किसी से तुलना ही नहीं की जा सकती। लेकिन अगर बात करुं मैं अपने फेवरेट पार्ट की, तो वो रणवीर सिंह की इंग्लिश है... मुझे सच में समझ नहीं आया कि टीम मीटिंग में कपिल पाजी इंग्लिश में क्यों बोलते थे... उन्होंने जिस तरह एक मामूली सी टीम को खास बनाकर विश्व कप विजेता बनाया, उस जज्बे ने आज भारतीय क्रिकेट को इस मुकाम पर पहुंचाया है।
आज बीसीसीआई के रईस बोर्ड है, आईसीसी तक को फंडिंग देता है। लेकिन ‘83’ में ऐसा नहीं था, तब कपिल देव ने गोरों की धरती पर ट्रॉफी उठाकर बीसीसीआई के कद को बढ़ाया था। भारत में हो रहे तमाम दंगे थम गए थे और सारा देश बस भारत की जीत का जश्न में मनाने में जुट गया था। जरा सोचिए... टीम का कप्तान रात में बैठकर पैसे बचाने के लिए बाथ टब में पैंट धुल रहा होता है... वाकई 1983 में भारत को विश्व कप जिताने के लिए कपिल देव फ्रीडम फाइटर वाले अंदाज में ही दिखे हैं... आखों में जुनून, दिल में जज्बा और जुबान पर खामोशी लिए... उन्होंने वो कर दिखाया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
175 रनों की ऐतिहासिक पारी दिखाकर जीत लिया दिल
1983 विश्व कप में कपिल देव के बल्ले से निकली 175 रनों की पारी की कोई रिकॉर्डिंग नहीं है, क्योंकि उस दिन इंग्लैंड के ब्रॉडकास्टर BBC की स्ट्राइक थी। इसलिए उस ऐतिहासिक पारी को सिर्फ मैदान पर मौजूद वह दर्शक ही देख सके। लेकिन कबीर खान की इस फिल्म के जरिए करोड़ों हिंदुस्तानी अब उस पारी को जी सकते हैं।
जिस तरह रणवीर सिंह ने अपनी टीम को बेहद खराब कंडीशन से निकालकर जीत तक पहुंचाया, उसे देखना काफी रोमांचक था। भले ही रियल मैच की रिकॉर्डिंग ना हो, लेकिन अब हम फिल्म ‘83’ में देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि उस वक्त जिम्बाव्बे के गेंदबाजों की क्या कंडीशन रही होगी और भारतीय ड्रेसिंग रूम ने कैसे इस जीत को सेलिब्रेट किया।
डायलॉक्स ने डाली फिल्म में जान
इस फिल्म में कमी निकालने जैसा तो कुछ दिखा ही नहीं, सिर्फ अलग-अलग चीजों की तारीफ ही की जा सकती है। सुमित अरोड़ा और कबीर खान द्वारा लिखे डायलॉक्स ने कमाल कर दिया। जहां, डायलॉक्स ने कई बार इमोशनल कर दिया, तो वहीं कुछ डायलॉक्स को सुनकर हंसी को रोक पाना असंभव हो गया।
जब भारतीय टीम, वेस्टइंडीज को प्रैक्टिस करते देखने आती है, तब टीम इंडिया का एक खिलाड़ी कहता है, ‘पौने साथ फुट की तो उसकी हाइट ही है. हाथ ढाई-तीन फुट और ऊपर जाता है. उसपर दो-तीन फुट उछलकर बॉल फेंकता है. 12 फुट की उंचाई से जब बॉल आती है, तो उसका पैनिक ही अलग होता है”। इसपर दूसरा खिलाड़ी कहता है, ‘हम मैच देखने आए हैं या हॉरर शो’। ऐसे कई डायलॉग्स हैं, जिन्होंने खूब रोमांचित किया।
किरदारों को चुन-चुन कर किया गया कास्ट
जब किसी सत्य घटना पर आधारित फिल्म बनाई जाती है, तो उसमें किरदारों की भूमिका और भी अधिक हो जाती है। फिल्म '83' के किरदारों को तो मानो चुन-चुन कर डायरेक्ट किया गया है। सभी अपने किरदार को पूरी तरह सूट कर रहे हैं और सभी की एक्टिंग लाजवाब है। तो आइए मुख्य किरदारों पर डालते हैं एक नजर:-
रणवीर सिंह – कपिल देव, दीपिका पादुकोण – रोमी देव, साकिब सलीम – मोहिंदर अमरनाथ, ताहिर राज भसीन – सुनील गावस्कर
जीवा – के. श्रीकांतो, जतिन सरना – यशपाल शर्मा, चिराग पाटिल – संदीप पाटिल, दिनकर शर्मा – कीर्ति आज़ादी, निशांत दहिया – रोजर बिन्नी, हार्डी संधू – मदन लाल, साहिल खट्टर – सैयद किरमानी, एमी विर्क – बलविंदर सिंह संधू, आदिनाथ कोठारे – दिलीप वेंगसरकर, धैर्य करवा – रवि शास्त्री, आर बद्री – सुनील वाल्सन, बोमन ईरानी – फारुख इंजीनियर।
सचिन को भी किया फिल्म में एंट्रोड्यूज
भारत में क्रिकेट की बात हो और वहां सचिन का जिक्र ना हो, ये कैसे हो सकता है... फिल्म ‘83’ में भी सचिन तेंदुलकर के बचपन की झलक दिखाई है। जब वह टीवी के सामने टकटकी लगाए भारत को विश्व कप जीतते देखते हैं और डिसाइड करते हैं कि वो भी भारत के लिए क्रिकेट खेलेंगे...
सोचिए इस एक जीत ने तमाम भारतीयों में क्रिकेट के प्रति आकर्षण पैदा किया, जिसका परिणाम है कि आज भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड दुनिया का सबसे अमीर और शक्तिशाली बोर्ड है और हमारे खिलाड़ियों को एक से बढ़कर एक सुविधाएं मिलती है, मगर फिल्म में आप देखेंगे कि ‘83’ में तो टीम को रिसीव करने के लिए वहां बस तक पहले से मौजूद नहीं रहती है.... (टाइम ड्यूरेशन 2 घंटे 32 मिनट, रेटिंग 4.5/5)