पंजाब के इस तेज गेंदबाज के आगे कांपते थे बल्लेबाजों के हाथ, लेकिन चोट ने बर्बाद कर दिया करियर

Published - 17 Feb 2021, 11:57 AM

वीआरवी सिंह

भारतीय क्रिकेट टीम में हमेशा से ही तेज गेंदबाज न होने की शिकायत रही है, लेकिन वीआरवी सिंह जैसे कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जो ऐसी ही गेंदबाजी के लिए जाने जाते हैं. दरअसल एक समय था जबकि टीम इंडिया में तेज गेंदबाजों की बड़ी कमी खलती थी, लेकिन वक्त-वक्त पर कई ऐसे बॉलर उभरे, जो तेज गेंदबाजी में काफी माहिर हैं. ऐसे बॉलरों की गेंदें मीडियम पेस में तो आती ही नहीं थी लेकिन जब वो गेंदे क्रीज पर खड़े बल्लेबाज के पास से होकर गुजरती थी, तो ऐसा लगता था कि जैसे वहां से कोई हवाई प्लेन गुजर गया. बल्लेबाज के हाथ कांपने लगते थे.

तेज गेंदबाज के रूप में उभरे थे वीआरवी सिंह

वीआरवी सिंह

इन्हीं में से एक तेज गेंदबाज पंजाब से थे. जिन्हें अंडर 19 में खेलते हुए देखा गया, फिर उन्होंने घरेलू क्रिकेट में रणजी ट्रॉफी में खेला. लेकिन चोट और इंटरनेशनल क्रिकेट के दबाव में वो टूट गए. भारतीय टीम के लिए उन्होंने 5 टेस्ट और 2 वनडे मैच खेले लेकिन विकेटों लेने के मामले में उन्होंने काफी निराश किया. अब आप उनके बारे में जानना चाहेंगे, कि आखिर वो कहां हैं, तो आपको इसी खबर के जरिए बताएंगे.

वीआरवी सिंह अंडर 19 खेलने के बाद सुर्खियों में आए थे. साल 2004 के अंडर 19 वर्ल्ड कप में वो टीम का हिस्सा थे. लेकिन वो सिर्फ एक ही मुकाबला खेल सके थे, जिसमें कुछ अच्छा देखने को नहीं मिला. लेकिन तेज गेंदबाजी करने के लिए उन्हें बॉर्डर-गावस्कर स्कॉलरशिप भी दी गई. जिसके दम पर उन्होंने ऑस्ट्रेहलिया में इसकी ट्रेनिंग की.

गेंदबाजी से वीआरवी सिंह ने सभी को कर दिया था प्रभावित

वीआरवी सिंह-तेज गेंदबाजी

बाएं हाथ के इस तेज गेंदबाज के दोस्त आरपी सिंह हुआ करते थे. 2005 में उन्होंने पंजाब के फर्स्ट क्लास क्रिकेट में हिस्सा लिया, और अपनी गेंदबाजी से हर किसी का दिल जीत लिया. रणजी ट्रॉफी के 7 मुकाबलों में उन्हें खेलने का मौका मिला, जिसमें 20.67 की औसत से गेंदबाजी करते हुए उन्होंने 34 विकेट झटके. इसके साथ ही 75 रन देकर उन्होंने 7 विकेट चटकाए थे, जो उनका सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा था.

2005 में ही चैलेंजर ट्रॉफी हिस्सा लेते हुए तो उन्होंने अपनी गेंदबाजी से ऐसा जादू चलाया, जिसने हर किसी को प्रभावित किया. इसके बाद उन्हें श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज में खेलने के लिए टीम से जोड़ा गया. लेकिन इस दौरान वो फिटनेस टेस्ट में फेल हो गए.

टीम इंडिया के लिए खेले सिर्फ 2 दो वनडे मैच

वीआरवी सिंह

इसके बाद उन्हें जब दोबारा से मौका मिला तो उन्होंने फिटनेस टेस्ट तो पास कर लिया, लेकिन बाएं पैर में इंजरी हो गई. हालांकि फिट होने के इंतजार में ये मौका भी उनके हाथ से निकल गया. लेकिन चयनकर्ता लगातार उन्हें टीम से जोड़ने की फिराक में लगे रहे. ऐसे में साल 2006 में जब इंग्लैंड के खिलाफ 7 वनडे मैचों की सीरीज हुई तो उसमें वीआरवी सिंह को टीम में शामिल किया गया.

जमशेदपुर वनडे में उन्होंने डेब्यू किया, और 5 ओवर डालकर 33 रन दे दिए. इंदौर में फिर वो वनडे का हिस्सा बने, लेकिन इस बार भी वो 7 ओवर में 72 रन दिए, और किस्मत ने उनका साथ देने से इनकार कर दिया.इसके बाद उन्हें वनडे में कभी मौका नहीं मिला.

जोहानिसबर्ग में चला बल्ला, लेकिन गेंदबाजी में नहीं कर पाए खुद को साबित

वीआरवी सिंह-गेंदबाज

साल 2005 की बात है, जब चैलेंजर ट्रॉफी में वीवीएस लक्ष्मण ने उनकी गेंदों का सामना किया था, और ये कहा था कि, वो भारत के सबसे तेज गेंदबाज हैं. वीआरवी सिंह ने साल 2006 में जून के महीने में वेस्ट इंडीज के खिलाफ अपना पहला टेस्ट डेब्यू किया था. पहली पारी में खेलते हुए उन्होंने 2 विकेट झटके थे. इस दौरान उनकी गेंदबाजी ने पूर्व पेसर इयान बिशप को बहुत ज्यादा प्रभावित किया. उन्होंने तब कहा था कि वीआरवी अभी सिर्फ बच्चा है.

हालांकि इस फॉर्मेट में वो पेस की बदौलत कुछ खास कमाल नहीं कर सके. पांच टेस्ट मैच खेलते हुए उन्होंने 8 विकेट चटकाए थे. 2 उन्होंने वेस्ट इंडीज, 2 दक्षिण अफ्रीका और 1 मैच बांग्लादेश के खिलाफ खेला था. दक्षिण अफ्रीका दौरे पर जोहानिसबर्ग टेस्ट में उन्होंने टीम को जीत दिलाने में भी योगदान दिया था.

अधूरा रह गया क्रिकेट करियर- वीआरवी सिंह

अंतिम बार वो बांग्लादेश के खिलाफ टेस्ट मैच खेले थे, जिसमें उन्होंने 3 विकेट झटके थे. लेकिन इसके बाद फिर वो कभी भी भारतीय टीम में अपनी जगह नहीं बना सके. उस दौर में वो सिर्फ 23 साल के थे. लेकिन इरफान पठान, मुनाफ पटेल जैसे नए गेंदबाजों की वजह से वीआरवी सिंह को नजरअंदाज कर दिया गया.

हालांकि इसके बाद वो वीआरवी सिंह ज्यादातर वक्त में इंजरी की ही समस्या से जूझते रहे. जिसके कारण फिर से वो कभी भी तेज गेंदबाज के तौर पर नहीं खेल सके. साल 2008 से लेकर 2012 तक वो पंजाब टीम में भी नहीं खेल सके. इसके बाद 2019 में उन्होंने संन्यास लेने की भी घोषणा कर दी. रिटायरमेंट के दौरान उन्होंने अपने बयान में कहा था कि, उनका क्रिकेट करियर चोटों की वजह से अधूरा रह गया. आज के दौर में वो चंडीगढ़ के कोच हैं.