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टीम इंडिया (Team India) के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ (Rahul Dravid) का टी20 विश्व कप 2024 के बाद कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है. भारतीय टीम को जुलाई में नया कोच मिल सकता है. जिसके लिए BCCI ने विज्ञापन जारी कर दिया है इस पद के लिए काबिल कैंडिटेट अप्लाई कर सकते हैं.
हालांकि, रिपोर्ट्स की माने तो वीरेंद्र सहवाग और आशीष नेहरा जैसे पूर्व खिलाड़ी इस पद में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. क्या ऐसे में भारतीय क्रिकेट टीम को विदेश का कोच मिलेगा. अगर ऐसा हुआ तो भारतीय क्रिकेट तबाह हो सकता है. क्योंकि, विदेशी कोचों का इतिहास कोई खास नहीं रहा है. आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं 3 ऐसे कारणों के बारे में, कि अगर ऐसा होता है तो टीम इंडिया का स्तर नीचे चला जाएगा!
1. भारतीय प्लेयर्स के साथ नहीं बिठा पाते तालमेल
- टीम इंडिया (Team India) को 1971 में केकी तारापोर के रूप में पहला इंडियन कोच मिला था. तब से लेकर 53 सालों की जर्नी में राहुल द्रविड़ कोच के रूप में टीम इंडिया के 28वें कोच बने. उनके कार्यकाल खत्म होने पर BCCI ने 29वें हेड कोच लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
- बता दें कि नए हेड कोच का कार्यकाल 1 जुलाई 2024 से 31 दिसंबर 2027 तक होगा, इस रेस में रिकी पोटिंग और स्टीफन फ्लेमिंग का नाम सबसे आगे चल रहा है.
- लेकिन, विदेशी कोच भारतीय क्रिकेट टीम के प्लेयर्स के साथ अपना तालमेल नहीं बिठा पाते हैं. खिलाड़ी भी अपनी बात खुलकर रखने में थोड़ा हिचकिचाते हैं.
- हालांकि, एक देशी कोच अपनी टीम के प्लेयर्स की बात और उनकी कमजोरियों भली भांति समझता है. इसकी मुख्य वजह कम्युनिकेशन गैप को भी मान सकते हैं. किसी तरह की मिसअंडरस्टैंडिंग को बातचीत के जरिए ही क्लियर करना मात्र एक जरिया होता है.
- लेकिन, भाषा के साथ-साथ किसी अनजान कोच के नेतृत्व में भारतीय खिलाड़ियों का उनके साथ तालमेल बिठाना बहुत मुश्किल होगा. जिसका सीधा असर खिलाड़ियों के प्रदर्शन और टीम के माहौल पर पड़ेगा, जो बिगड़ सकता है.
2. विदेशी कोचों का नहीं रहा है अच्छा इतिहास
- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड विदेश कोच नियुक्त करने के पक्ष में कम ही रहा है. भारत को पिछले 53 सालों में 28 कोच मिले. जिसमें 4 विदेशी कोचों को ही जगह मिल सकी. टीम इंडिया को साल 2005 में जॉन राइट के रूप में पहला विदेशी कोच मिला. उनके कार्यकाल में खिलाड़ियों के रिश्ते ठीक नहीं रहे. उन्होंने खराब शॉट पर आउट होने पर वीरेंद्र सहवाग को थप्पड़ जड़ दिया था.
- जबकि ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल साल 2005-07 में भारतीय टीम के हेड कोच बने. उनके कार्यकाल में भारतीय का प्रदर्शन कभी परवान नहीं चढ़ सका और उन्होंने राजनीति कर टीम को दो खेमों में बांट दिया. यह बात किसी से छिपी नहीं है.
- उनके कार्यकाल में सौरव गांगुली जैसे बेहतरीन खिलाड़ी को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, जिसके बाद जमकर हंगामा मचा था.
- हालांकि, विदेशी कोच के रूप में गैरी कर्स्टन सफल रहे, उनके कार्यकाल में भारत ने साल 2011 में वनडे विश्व कप अपने नाम किया. चौथे विदेशी कोच के रूप में जिम्बाब्वे के डंकन फ्लेचर ने साल 2011-15 में टीम इंडिया में हेड कोच की भूमिका निभाई.
- भारतीय टीम उनके कार्यकाल में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर सकी और साल 2015 के विश्व कप में भारत को सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों 95 रन से शर्मनाक हार झेलनी पड़ी.
3. विदेशी कोच दूसरी टीमों के प्रति नहीं होते वफादार
- भारतीय कोच की इंडियन क्रिकेट होने के नाते पूरी कोशिश होती है कि अपने मुल्क के लिए 100 फीसद समर्पण दिया जाए. देशी कोच का मात्र एक ही सपना होता है कैसे भी टीम इंडिया (Team India) को शिखर पर ले जाया जाए. लेकिन, विदेशी कोच किसी दूसरी टीम के लिए इतना त्याग और बलिदान नहीं दे सकते हैं.
- कई मौकों पर देखा गया है कि अपने देश लौटते ही गलत बयानबाजी देना शुरू कर देते हैं. हाल ही में देखा गया था कि पाकिस्तान क्रिकेट टीम का भारत में खेले गए वनडे विश्व कप 2023 में खराब प्रदर्शन किया.
- जिसके बाद बॉलिंग कोच मोर्ने मोर्केल ने अचानक बिना किसी सूचना के बीच में ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इतना ही नहीं मुख्य कोच मिकी आर्थर ने बिना किसी जबावदेही के चलते बने. जिसके बाद PCB को विदेश कोच नियुक्त करने पर जमकर खरी खोटी सुननी पड़ी थी.
- इतना ही नहीं विदेशी कोच का अपने देश की टीम के साथ भी कुछ अच्छा रिश्ता नहीं जम पाता, इसका बड़ा उदाहरण जस्टिन लैंगर हैं. जिनके खिलाफ जमकर आवाजें उठी थी और अंत में उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. ऐसे में टीम इंडिया (Team India) के लिए किसी विदेशी कोच को हायर करना टीम के लिए तबाही का कारण बन सकती है.