न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम (New Zealand) को दुनियाभर में उसके खेल के साथ-साथ उनकी स्पोर्ट्समैनशिप व सादगी के लिए पसंद किया जाता है। 2019 विश्व कप का फाइनल मुकाबला आज भी फैंस याद करते हैं, तो केन विलियमसन का वो उदास चेहरा नजर आता है, जब मैच टाई होने पर बाउंड्री नियम के तहत इंग्लैंड को विजेता घोषित कर दिया गया था। इससे पहले 2015 में कीवी टीम को ऑस्ट्रेलिया के हाथों फाइनल में हार मिली थी। अब टीम को भारत के साथ टेस्ट चैंपियशिप फाइनल खेलना है...
अपने खिलाड़ियों पर भरोसा जताता है New Zealand
कहते हैं खिलाड़ियों से अच्छा प्रदर्शन निकलवाने के लिए उनपर भरोसा करना बहुत ही जरुरी होता है। यही है New Zealand के सफलता का मूलमंत्र। जी हां, ये बिलकुल सही बात है कि खिलाड़ियों को उनकी काबिलियत साबित करने के लिए नियमित मौके मिलने चाहिए, तभी वह अपने टीम मैनेजमेंट व बोर्ड पर भरोसा करते हैं और इस भरोसे से खिलाड़ी का प्रदर्शन निखरकर सामने आता है। यदि खिलाड़ी के मन में अपनी जगह बचाने के लिए खेलने वाली भावना होती है, तो उसका प्रदर्शन उस स्तर का नहीं हो पाता, जो उससे उम्मीद की जाती है।
अब यदि आप कीवी वह टीम है, जिसने पिछले 7 सालो में 1 जनवरी 2014 से दूसरी टीमों की तुलना में सबसे कम खिलाड़ियों को मौका दिया है, जिसका सीधा मतलब है कि वह अपने पुराने खिलाड़ियों पर अधिक भरोसा जताती है। इसका परिणाम भी आप उसके प्रदर्शन पर साफ देख सकते हैं। आज New Zealand टेस्ट की नंबर-1 टीम है। ब्लैक कैप्स ने 59 टेस्ट खेले और 35 खिलाड़ियों को मौका दिया।
टीम इंडिया देती है युवाओं को मौका
एक ओर जहां New Zealand की टीम अपने खिलाड़ियों पर भरोसा जताती है और कम ही खिलाड़ियों को मौका देती है। तो वहीं भारतीय टीम का इस मामले में काम एकदम विपरीत है। टीम इंडिया ने 74 टेस्ट मैचों में 45 खिलाड़ियों को मौका दिया। वहीं ऑस्ट्रेलिया ने 46 और इंग्लैंड ने 59 खिलाड़ियों को, इंग्लैंड ने सबसे अधिक एक्सपैरिमेंट करते हुए खिलाड़ियों को मौके दिए हैं। इसका उसे नुकसान भी भुगतना पड़ा है।
ऑस्ट्रेलिया के प्रदर्शन में भी गिरावट देखने को मिली है। भारत ने बैक टू बैक कंगारुओं को उनके घर पर टेस्ट सीरीज में 2-1 से हराकर बॉर्डर-गावस्कर सीरीज जीती है। अब इस पूरे आंकड़े से ये बात समझ आती है कि जो टीम जितना ज्यादा अपने खिलाड़ियों पर भरोसा जताती है, उसे उतना ही फायदा मिलता है।