भाई कुलदीप को नहीं बल्कि इस भारतीय खिलाड़ी को अपना आइडल मानती हैं बहन अर्चना देवी, वर्ल्ड कप जिताने के बाद किया खुलासा
भाई कुलदीप को नहीं बल्कि इस भारतीय खिलाड़ी को अपना आइडल मानती हैं बहन अर्चना देवी, वर्ल्ड कप जिताने के बाद किया खुलासा

हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में आईसीसी अंडर-19 विश्व कप (U19 T20 World Cup) जीतने वाली भारतीय महिला टीम की ओर से अद्भुत प्रदर्शन करने वाली अर्चना देवी (Archana Devi) ने अपने आइडल खिलाड़ी का नाम बताया है। लेकिन, आपको हैरानी होगी की उन्होंने कुलदीप यादव (Kuldeep Yadav) को नहीं बल्कि टीम इंडिया के इस खिलाड़ी को अपना आइडल बताया है। उन्होंने भाई चाइमनामैन को नजरअंदाज इस खिलाड़ी की जमकर तारीफ की है।

आर अश्विन को बताया आइडल

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अर्चना देवी (Archana Devi) ने हाल ही में बीसीसीआई को दिए एक इंटरव्यू में इसका खुलासा किया कि वे अपना आइडल प्लेयर किस खिलाड़ी को मानती हैं। उन्होंने यहाँ कुलदीप यादव के बजाए सीनियर खिलाड़ी आर अश्विन (R Ashwin) का नाम लिया। उन्होंने कहा, ‘कि वह उनके आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत को देखती हैं।’

अंडर-19 विश्व कप की स्टार प्लेयर अर्चना देवी ने कहा कि, ‘मैं उनकी गेंदबाजी देखती रहती हूं और वह अपनी प्रगति में बहुत ही आश्वस्त रहते हैं। परिस्थिति चाह कोई भी हो, वह हमेशा आश्वस्त रहते हैं।’ बता दें कि 18 वर्षीय अर्चना ने अंडर-19 महिला टी20 विश्व कप के फाइनल मैच में तीन ओवर में 17 रन देकर दो विकेट चटकाए, जिसके कारण इंग्लैंड की टीम बेहद कम स्कोर पर ही सिमट गई और भारत को आसान जीत मिली।

कुलदीप यादव से मिली टिप्स

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इस इंटरव्यू में अर्चना देवी (Archana Devi) ने बताया कि, ‘जब भी मुझे कोई समस्या हुई, वह (कुलदीप यादव) मुझे प्रेरित करते रहे और मेरे लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करते रहे हैं।’ बता दें कि कुछ वर्षों पहले जब गर्मी की छुट्टी में अर्चना देवी अपने घर कानपुर गई तो उसका संपर्क भारतीय क्रिकेटर कुलदीप यादव (Kuldeep Yadav) के कोच कपिल पांडे से हुआ। अर्चना के वीडियो देखने के बाद कपिल पांडे ने उन्हें कानपुर लाने को कहा और यह भी कहा कि वह अपनी जेब से उनके इस क्रिकेट का ख्याल रखने वाले हैं।

माँ को लोग कहते थे ‘डायन’

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बता दें कि अर्चना की माँ को उसके गाँव के लोग एक समय में ‘डायन’ कहते थे। विश्व विजेता अर्चना देवी (Archana Devi) इस इंटरव्यू में कहा, “मेरी मां ने मुझे मेरे गृहनगर के एक स्कूल में दाखिला दिलाया, लेकिन हम आर्थिक रूप से कमजोर थे। हालाँकि, मैं अपने स्कूल की दौड़ में दूसरे स्थान पर आई, और मेरी शिक्षिका (पुनम गुप्ता) ने मुझे देख लिया। उसने मेरी मां से कहा कि मुझे खेलने की अनुमति दें। अब फैसले का फल उनको मिला है। हर कोई अब घर में खुश है। मुझे अभी भी याद है कि मेरे गाँव के लोग नहीं जानते कि क्रिकेट क्या है या पुरुषों और महिलाओं के बीच क्या अंतर है? विश्व कप जीतने के बाद अब हर कोई इसके बारे में जानता है।”