भारतीय क्रिकेट टीम की लोकप्रियता की कोई सीमा नहीं है, साथ ही भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) के पास बेशुमार पैसा और संसाधन है। बावजूद इसके भारत अब तक सिर्फ 4 बार आईसीसी ट्रॉफी अपने नाम करने में सफल हुआ है। जिसमें से 2 खिताब 2007 से 2013 के बीच महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में जीते गए और 1983 की विश्वकप विजय तो भारतीय क्रिकेट की रूप रेखा बदलने वाली थी।
बीते 1 दशक से हर एक आईसीसी टूर्नामेंट में सबसे मजबूत टीम मानी जाती रही है। फिर भी साल 2013 के बाद टीम इंडिया ने एक भी आईसीसी खिताब अपने नाम नहीं किया है। द्विपक्षीय सीरीज में भारतीय टीम का कोई सानी नहीं है, चाहे घरेलू सीरीज हो या विदेशी दौरा भारत ने हर जगह अपनी जीत का परचम लहराया है। आईसीसी टूर्नामेंट में भारत की असफलता के पीछे सिर्फ खिलाड़ियों का प्रदर्शन ही नहीं बल्कि बीसीसीआई (BCCI) की ओर से हुई कुछ गलतियां भी है।
2007 विश्वकप से पहले छीनी गई सौरव गांगुली की कप्तानी
साल 2007 में भारतीय क्रिकेट टीम सबसे मजबूत थी, उस समय कहा जाता था कि अगर टीम इंडिया को कोई हरा सकता है तो वे खुद टीम इंडिया ही है। वेस्टइंडीज में खेले गए 2007 विश्वकप में हुआ भी कुछ ऐसा ही। इस टूर्नामेंट के पहले ही मैच में भारत को बांग्लादेश से शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद ग्रुप स्टेज से ही टीम बाहर हो गई।
टीम इंडिया की हार के पीछे कहीं ना कहीं बीसीसीआई (BCCI) की भी गलती थी। इतने बड़े टूर्नामेंट से पहले सौरव गांगुली को कप्तान के पद से हटाकर राहुल द्रविड़ को टीम की कमान सौंपी गई। जिसके बाद ड्रेसिंग रूम 2 भागों में बंट गया और इसका नतीजा मैदान पर भी नजर अया। अगर भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) स्थिति को बहतरे तरीके से संभाल सकता तो तस्वीर बदल सकती थी।
युजवेन्द्र चहल को T20 WC 2021 में नहीं दिया मौका
विश्वकप 2021 की शुरुआत से पहले यदि आपने किसी से पूछा होता कि स्पिनर के रूप में टीम इंडिया की पहली पसंद कौन होगा, तो दस में से नौ लोगों ने युजवेन्द्र चहल का नाम लिया होगा। लेग स्पिनर भारत के सीमित ओवरों के सेट-अप का एक अभिन्न अंग था और पिछले चार वर्षों में एक बार भी उन्हें टीम से बाहर नहीं किया गया था।
BCCI चयनकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि चहल हवा में धीमी गति से गेंदबाजी करते हैं, इसलिए उनका कौशल संयुक्त अरब अमीरात की पिचों पर राहुल चाहर की तुलना में अधिक प्रभावी नहीं होगा जो अधिक गति से गेंदबाजी करते हैं। हरियाणा के स्पिनर ने आईपीएल 2021 में अपने अविश्वसनीय प्रदर्शन से चयनकर्ताओं को अपने निर्णय के बारे में सोचने का मौका दिया। लेकिन फिर भी उन्होंने उन्हें नजरअंदाज कर दिया।
अंबाती रायडू की जगह विजय शंकर को WC 2019 में दी तवज्जो
विश्वकप 2019 में टीम इंडिया की शर्मनाक हार से करोड़ों भारतीय समर्थकों के दिल तोड़ दिए थे। इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम खिताब अपने नाम करने की प्रबल दावेदार थी। लेकिन सेमी सेमीफाइनल में न्यूज़ीलैंड के हाथों चंद मिनटों के खराब खेल ने पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया था। लेकिन उससे भी पहले BCCI चयनकर्ताओं ने टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले ही अपने सिलेक्शन से सभी को चौंका दिया था।
जब उन्होंने अनुभवी बल्लेबाज अंबाती रायडू की जगह हर्फ़नमौला खिलाड़ी विजय शंकर को टीम में वाइल्ड कार्ड के तौर पर एंट्री दी। चयनकर्ताओं के इस फैसले की भरसक आलोचना हुई, लेकिन तत्कालीन चीफ सिलेक्टर एमएसके प्रसाद ने विजय के चयन को लेकर बोला कि वो 3D खिलाड़ी है। अंत में भारत को अंबाती रायडू के कौशल वाले बल्लेबाजी की कमी खली।
WTC फाइनल में किया गया गलत टीम सिलेक्शन
भारत ने आईसीसी विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल की शुरुआत से एक दिन पहले अपनी प्लेइंग इलेवन की घोषणा की और टीम मैनेजमेंट ने बादल छाए रहने के बावजूद किसी भी स्थिति के लिए इलेवन का समर्थन किया। रवींद्र जडेजा को ऑलराउंडर के रूप में टीम में शामिल किया गया था क्योंकि वे बाएं हाथ की स्पिन गेंदबाजी कर सकते हैं और उनका बल्लेबाजी फॉर्म भी शानदार रहा है।
हालांकि इसके लिए जिसके लिए टीम ने हनुमा विहारी को प्लेइंग एलेवन से बाहर कर दिया। विहारी के पास एक बेहतर तकनीक थी जो इन परिस्थितियों में काम आ सकती थी और साथ ही, वह उन पार्ट-टाइम स्पिन गेंदबाजी भी कर सकते थे। इस तरह की परिस्थितियों में खेलने वाले दो स्पिनर निश्चित रूप से आदर्श नहीं हो सकते थे।
अनफिट हार्दिक पांड्या को T20 WC 2021 में मिला मौका
टी20 विश्वकप 2021 के दौरान हार्दिक पांड्या की फिटनेस हमेशा चिंता का विषय थी लेकिन BCCI मुख्य चयनकर्ता चेतन शर्मा को भरोसा था कि वह चार ओवर का पूरा कोटा पूरा कर लेंगे। बहुत से विशेषज्ञ भारत की प्लेइंग इलेवन में अनफिट या हाफ-फिट हार्दिक को रखने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन चयनकर्ताओं ने हर तर्क को धता बताते हुए कहा कि वह सही रास्ते पर है।
हार्दिक ने सभी मैच खेले लेकिन सभी में असफल रहे। उन्होंने गेंदबाजी फिर से शुरू की लेकिन यह उनके सर्वश्रेष्ठ के करीब कहीं नहीं थी। चयनकर्ताओं को उनकी क्षमता पर इतना भरोसा था कि उन्होंने उनके बैकअप का नाम भी नहीं लिया और टीम के पास उन्हें खेलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।